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‘अर्थ’ की बहस में ‘अंधी’ हुई राजनीति, पर आप तो देखते हो ना!

तीखी बात
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modi manmohan


इन दिनों अर्थव्यवस्था को लेकर एक बहस छिड़ी है. वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा कह रहे हैं कि अरुण जेटली ने अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर दिया. तो कांग्रेस कह रही है कि हम तो पहले से ही ये कह रहे थे कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर चुकी है. वहीं मोदी सरकार इस वक्त की अर्थव्यवस्था को आर्थिक सुधारों वाला बता रही है. लेकिन सवाल ये है कि इन सब बातों में सच क्या है जो हमारा और आपका जानना ज़रूरी है. क्या वाकई अर्थव्यवस्था का कबाड़ा हो गया है? या फिर मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था में दम है.


आज के वक्त में ये जानना बहुत ज़रूरी हो गया है कि आखिर कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ. फिलहाल सच ये भी है कि अप्रैल 2014 में जारी रिपोर्ट में साल 2011 के विश्लेषण में विश्व बैंक ने ‘क्रयशक्ति समानता’ (परचेजिंग पॉवर पैरिटी) के आधार पर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित किया था और बैंक के इंटरनेशनल कंपेरिजन प्रोग्राम (आईसीपी) के 2011 राउंड में अमेरिका और चीन के बाद भारत को तीसरा स्थान दिया. 2005 में ये स्थान 10वां था. पर ये तो आंकड़ों का खेल है, लेकिन क्या आम जनता की और क्या देश की प्रगति हुई, क्या लोगों को रोजगार मिला. शायद नहीं, क्योंकि रोजगार देने वालों की और रोजगार लेने वालों की हालत वही है जो वादों की होती है. दिखता अच्छा है पर सामने नहीं आता.


यही वादे सिर्फ बीजेपी सरकार में ही नहीं कांग्रेस सरकार ने भी किए थे या यूं कहें कि 70 सालों से देश की सरकारें भारत के नौजवानों को वादे करती और सपना दिखाती आई हैं. मगर अब जनता जवाब मांगने के मोड में आई है. तो सरकारें पिछली हों या अब की, सभी को मिर्ची लगने लगी है. मोदी सरकार को जनता ने खुलकर वोट दिया. वो सरकार के भले के लिए नहीं था, बल्कि जनता का भला करने के लिए था, लेकिन सच तो ये है कि 70 सालों में अभी तक गरीबी दूर नहीं हुई.


इसकी वजह क्या है. वजह ये है कि हमारी सरकारें आंकड़ों पर ही लड़ती रहीं और देश में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती रही. तो क्या इसके लिए कांग्रेस सरकार ज़िम्मेदार नहीं है, क्योंकि देश में सबसे ज्यादा शासन उसने किया है. जब कांग्रेस की सरकार रही तो देश गरीब क्यों रहा, जबकि इस वक्त के कांग्रेस के नेता कहते दिख रहे हैं कि जीडीपी गिर रही है. वाकई गिर रही होगी, लेकिन जब आपके समय पर उठ रही थी, तो आपने कितने लोगों को रोजगार दे दिया. क्या कोई आंकड़ा है.


इसमें सच मैं आपको बता दूं कि सरकार जीडीपी के कथित आंकड़े तो रखती है, लेकिन रोजगार कितना मिला उसका आंकड़ा नहीं रखती. मोदी सरकार का भी अभी यही हाल है. सरकार को ये सही आंकड़ा पेश करना चाहिए कि उसने रोजगार कितना दिया. महंगाई पर सियासत वर्षों तक ऐसे ही चलती रहेगी. देश की जीडीपी विपक्ष के निशाने पर आती रहेगी. लेकिन सच तो ये है कि सरकार जनता की वही होगी, जो रोजगार देगी गरीबी मिटाएगी.


अब बात एक सबसे बड़े ब्रह्मास्त्र नोटबंदी की भी कर लेते हैं, जिसने पूरे देश या यूं कहें कि विपक्ष को हिलाकर रख दिया था. तो क्या नोटबंदी से देश गर्त में चला गया. तो सच ये है कि सिस्टम में पैसा वापस आने से देश को एक नया आधार मिला है, जो अब तक की पिछली सरकारें नहीं कर पाईं. अगर पिछली सरकारों ने ऐसा किया होता तो आतंकवादियों के पास और विदेशों में काला धन इकट्ठा नहीं हो पाता. ये देश का दुर्भाग्य है कि एक अच्छे कदम को जिसे जनता स्वीकार कर रही है, उसे विपक्ष सपोर्ट करने के बजाए गाली देता है और जनता उस सरकार को वोट दे रही है जिसने नोटबंदी की.


नोटबंदी से तो साफ है कि जनता परेशान नहीं है. हां बढ़ते टैक्स के बोझ से जनता ज़रूर परेशान हो सकती है और उसमें भी अब जीएसटी आ गया, तो देश में अफरा तफरी है. मगर क्या जीएसटी देश का बंटाधार कर रही है, तो सच तो ये है कि देश में बहुत बड़ा आकंड़ों का खेल चल रहा है. जीएसटी तो कांग्रेस ने ही शुरू की थी पर कभी उसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. ये भी सच है कि जीएसटी को कांग्रेस अर्थव्यवस्था में सबसे बड़े सुधार का आधार हमेशा बताती रही है और अब जब जीएसटी लागू हुआ, तो उस पर भी कांग्रेस ने हस्ताक्षर किए, लेकिन हंगामा अब क्यों बरपा है.


ऐसे में देश के लोगों को ये जानना बहुत ज़रूरी है कि कांग्रेस को सिर्फ इतनी बात नहीं पच रही है कि जीएसटी पर मोदी सरकार वाहवही क्यों लूट रही है. तो साहब आप अपने 10 साल में जीएसटी लागू क्यों नहीं कर पाए. बीजेपी को चिल्लाने देते, क्योंकि सच तो ये है कि विपक्ष सरकार की आलोचना करके ही तो वोट पाएगा. सच्चाई भी यही है कि सच कड़वा और तीखा होता है, इसलिए अब देश में ज़रूरत इस बात की है कि अब आप जब 2019 में किसी भी पार्टी को वोट दें, तो उसके इतिहास को खंगाले.


अपनी इस मानसिकता को छोड़ें कि हमारा काम तो विधायक से पड़ता है या सांसद से पड़ता है, इसलिए हम उसे ही देखकर वोट देंगे. ऐसा बिल्कुल न करें, ये सोचकर वोट करें कि सरकार किसकी बनेगी. क्योंकि आपके सांसद और विधायक पार्टी विचारधारा से ऊपर नहीं उठ पाते और फिर वो आपके नहीं पार्टी के ही बनकर रह जाते हैं. इसलिए सोचो समझो फिर वोट दो और अपने लिए रोजगार मांगो.

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