Menu
blogid : 14062 postid : 737559

फिर ‘डर्टी’ पॉलिटिक्स क्यों?

तीखी बात
तीखी बात
  • 38 Posts
  • 7 Comments

dirty कहते हैं यहां दरारों में झांकना तो सब चाहते हैं…
लेकिन दरवाजा खोल दो तो कोई देखने भी नहीं आता…

ये चंद लाइनें आज की राजनीति पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं क्योंकि गंदी हो चुकी पॉलिटिक्स में अब मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखा जाता और सिर्फ दूसरों के घर में पड़ी दरारों में ही झांका जाता है इसी वजह से गंदे बयानों के तीर अब मर्यादाओं को लांघते हुए राजनीति के सीने को चीरते दिखाई पड़ते हैं ये कैसी राजनीति है जिसमें कोई किसी को बकरी कहता है तो कोई किसी को चूहा हद तो तब हो जाती है जब राजनीति में राक्षस और शैतान जैसे शब्दों का खुले तौर पर सार्वजनिक मंच से प्रयोग किया जाता है… सारी मर्यादाएं को भूलकर नेता निजी हमले करने से भी नहीं चूकते क्योंकि वो निजी हमला उन्हें वोट दिलाएगा इसलिए तो जब मोदी ने अपनी पत्नी का नाम नामांकन में भरा तो जबर्दस्त हंगामा मचा क्योंकि मुद्दा यहां झूठ और सच साबित करने का था चाहे वो पर्सनल ही क्यों न हो तो बीजेपी भी कम नहीं है उसने भी प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा के ज़रिए पूरे गांधी परिवार को घेरने की प्लानिंग बना ली और एक वीडियो सीडी के ज़रिए वाड्रा को जमीनों का सौदागर और गुनहगार बताया है लेकिन हद तो तब हो गई जब केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने मोदी की आंखों को राक्षसों जैसा बता दिया इस अभद्र होती राजनीति में राष्ट्रीय पार्टी ही नहीं क्षेत्रीय पार्टियां भी शामिल चुकी हैं क्योंकि सवाल मतदाताओं के दिल जीतने का है इसलिए मोदी ममता बनर्जी पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि ममता की पेंटिंग 4 लाख 8 लाख और 15 लाख में कभी बिका करती थी और आज वो 80 लाख में बिक रही है आखिर किसने ममता के हुनर को पहचाना… इसका जवाब ममता बनर्जी जनता को बताएं… तो ज़ाहिर है कि टीएमसी के नेता भी आग उगलेंगे लेकिन वो आग इतनी अमर्यादित होगी ये नहीं सोचा था टीएमसी के एक सांसद ने तो मोदी को गुजरात दंगों के लिए कसाई तक कह दिया चलिए ये तो नेताओं के आपस की लड़ाई थी जो चुनावी मौसम में चलती रहती है हालांकि ये बात अलग है कि इस मौसम में कुछ ज्यादा ही चल रही है लेकिन नेता अब जनता को भी समुद्र में डूबने की नसीहत देते नज़र आ रहे हैं तो कोई कह रहा है कि फलाने को वोट नहीं दिया तो पाकिस्तान भेज देंगे पता नहीं इस बार राजनीति को क्या हो गया है कश्मीर का मुद्दा गर्मी हो या सर्दी हमेशा गरम ही रहता है लेकिन उसमें और ज्यादा हीट बढ़ाने का काम नेता करते हैं ताकि सेकुलरिज्म और कम्यूनलिज्म की दुहाई दे सके लेकिन देश ने तो कभी नहीं चाहा कि वो इन सब बातों पर गौर करे लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि ये नेता ये सब सोचने पर मजबूर कर देते हैं कोई नहीं वो भी अब देख ही लेंगे कि किसने ज़हर घोला है और किसने देश को अमृत दिया है ये तो हमें और आप को ही तय करना है लेकिन गंदी होती राजनीति में सभी राजनीतिक दल अपनी मर्यादाएं तोड़ चुके हैं इसमें कोई संदेह नहीं है जिनका मकसद सिर्फ एक है कि कैसे जनता के सामने झूठ और सच साबित किया जाए मगर सवाल ये है कि क्या जनता के मापदंड इन्हीं बयानों पर तय होते हैं क्या जनता इन बयानों पर ही भरोसा करके वोट देती है अगर नहीं तो फिर डर्टी पॉलिटिक्स क्यों…? इस सवाल का जवाब नेताओं को समझ में आए तो ठीक… नहीं तो जनता 16 मई को इसका जवाब ज़रूर दे देगी
Shashank.gaur88@gmail.com

Tags:                  

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply