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छोड़ कर अपना देश हम कहां आ गए हैं
दूर होने के ख्वाब से दिल सहम उठता है
खो न जाए हम बीच बाज़ार में कहीं पर
सोच कर ये मेरी आंखों से पानी फूट पड़ता है
जो लोग कभी पलकों से हमें उतरने नहीं देते थे
आज हम जाते हैं तो मेहमान नवाजी करते हैं
कहीं खो न जाए वो प्यार उन आंखों के झरोखों से
सोचकर ये मेरी आंखों से पानी फूट पड़ता है
याद है हमें उंगली पकड़कर घूमते थे हम
बड़े हो गए अब हाथ पकड़कर रो भी नहीं सकते
अगर रो दिए तो दिल के कई बांध टूट जाते हैं
सोचकर ये मेरी आंखों से पानी फूट पड़ता है
कौन कहता है कि वक्त के मारे हैं हम
हमें तो वक्त ने ही किस्मत के सहारे फेंक दिया है
कैसे इस दिल को बताएं कि पास है सब मेरे
सोचकर ये मेरी आंखों से पानी फूट पड़ता है
याद आती है जब तो देख लेते हैं तस्वीरें
दिल से लगाते हैं तो दिल भी पूछ लेता है
छोड़ कर अपना देश हम कहां आ गए हैं
सोच कर ये मेरी आंखों से पानी फूट पड़ता है
Written by – shashank gaur
Shashank.gaur88@gmail.com
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