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एक ही सॉल्यूशन सिर्फ “राइट टू रिकॉल”

तीखी बात
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arvind_kejriwal_02803 ये बात सच है कि जब जब देश में अहम परिवर्तन हुए हैं तब तब आधियां तो चली हैं ऐसी ही एक आंधी चली थी अन्ना के समय पर जिस आन्दोलन का देश की जनता ने गांधी के बाद पहली बार पूरा प्रभाव देखा और सरकार की नींव को हिलने पर मजबूर कर दिया भले ही लोकपाल बिल जो जनता चाहती थी वैसा नहीं आया। और सरकार ने अपनी ही चलाई, लेकिन देश की जनता को अनशन की ताकत का एक मूल मंत्र मिल गया। जिसको तब से लेकर अब तक कई बार दोहराया जा चुका है। कई बार इसके परिणाम अच्छे मिले और कई बार किसी ने नहीं पूछा, तो कई बार जनता अनशन पंडाल में टूट कर गिरी तो कई बार चंद लोगों से ही पंडाल सजता हुआ दिखाई दिया। चंद लोगों से सजा हुआ पंडाल का नज़ारा अभी हाल ही में बैठे अन्ना के पूर्व सहयोगी और अब आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के अनशन पर भी दिखा जो अनशन दिल्ली के लोगों के लिए सबसे अहम बिजली पानी की समस्याओं से निजात दिलाने के लिए था लेकिन आन्दोलन को लोगों का अपेक्षित समर्थन नहीं मिला और न दिखी मीडिया की कवरेज। जिससे कई सवाल उठे कि क्या मीडिया सिर्फ ऐसी ही जगह की कवरेज करती है जहां मसाला होता है या फिर वास्तव में अब अनशन शब्द एक बिजनेस बन गया है साथ ही सबसे अहम सवाल ये भी उठा कि अरविंद केजरीवाल जब अन्ना के साथ थे तो उन्हें जबरदस्त जनसमर्थन मिल रहा था लेकिन अब कानी चिड़िया भी नहीं पूछ रही है आखिर क्यों। क्या इस समर्थन में बदलाव का कारण आम आदमी पार्टी का उद्भव है हालांकि मैं मानता हूं कि अरविंद केजरीवाल को भी इस विषय में गंभीरता पूर्वक सोचना चाहिए कि देश में पैदा हुई राजनीतिक कीचड़ को उस कीचड़ में उतरकर साफ करना ठीक रहेगा या सिर्फ बाहर रह कर ही उसके साफ होने का इंतजार करना। लेकिन एक बात तो हम सभी ने इतिहास के पन्नों को खोलने पर पढ़ी और देखी है कि जब जब अनशन हुए हैं सरकार हिली तो है पर उन आन्दोलनों का परिणाम जो हुआ है वो यही है जो आज हो रहा है मतलब जब गांधी के समर्थन में आन्दोलन चला तो नेहरू की टीम राजनीति में उतर गई और जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आन्दोलन चला तो खुद जेपी की टीम भी राजनीति में उतर गई जिसके बाद जनता ने चले आ रहे कांग्रेस के शासन के बाद एक नया शासन जनता पार्टी के नाम से देखा। जिसे लोगों ने सर आंखों पर रखा हालांकि वो बाद में विभाजित होकर आज की भृष्ट राजनीतिकरण में बदल गया मेरा मानना है जिसे फिर से साफ तो सिर्फ राजनीति में उतरकर ही करना पड़ेगा। लेकिन क्या अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम उसके लिए ठीक है इसका फैसला हम जनता को ही करना है। लेकिन मानो या न मानो सच तो यही है कि कीचड़ को साफ करने पर हाथ काले होना तो तय है पर उन हाथों को साफ कराने के लिए पानी जनता को अपने पास रखना होगा यानि एक ही सॉल्यूशन राइट टू रिकॉल। जिसकी इस तरह की राजनीति को देखने के बाद सबसे ज्यादा ज़रूरत है जिसको जनता को अब लेना नहीं, छीनना है।
shashank.gaur88@gmail.com

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