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हिंदू, मुसलमान छोड़ो, मंहगाई से निजात दिलाओ…

तीखी बात
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mahngai भारत के सभी राजनीतिक गलियारों में सिर्फ एक ही बहस छिड़ी हुई है कि 2014 का प्रधानमंत्री कौन बनेगा कांग्रेस में कुछ लोग कहते हैं कि राहुल गांधी बनेंगे तो बीजेपी में कुछ लोग कहते हैं कि मोदी का नाम सबसे ऊपर है लेकिन ये दोनों पार्टियां हैं कि अपने पत्ते खोलना ही नहीं चाहती तो वहीं एनसीपी है कि शरद पंवार को प्रधानमंत्री के सपने संजोए बैठी है तो समाजवादी पार्टी एक बार अपने मुखिया मुलायम को प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहती है तो मायावती कहती है कि दलितों की रक्षा के लिए उनका प्रधानमंत्री होना बहुत ज़रुरी है लेकिन आम जनता किन किन उम्मीदों भरे प्रधानमंत्री के सपने संजोकर बैठी है ये तो किसी ने नहीं सोचा लेकिन जो देश की सबसे बड़ी पार्टी हैं वो हिन्दू और मुसलमान के मुद्दों पर ही उलझी रह जाती है बीजेपी कहती है कि वो राम मंदिर बनाने को तवज्जो देती है तो कांग्रेस कहती है कि बीजेपी मुसलमान विरोधी पार्टी है लेकिन सच मायने में इन सब बातों से किसी भी आम आदमी को कोई मतलब नहीं, चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान। इन सब बातों से मतलब पड़ता है तो सिर्फ उन सियासी नेताओं को जो इस बहाने थोड़ी सी अपनी पहचान बनाना चाहते हैं लेकिन इस लड़ाई में आम जनता के रोज़ाना की दिनचर्या से जुड़े वो सवाल पीछे छूट जाते हैं जैंसे महंगाई, भ्रष्टाचार, जिनसे उसका रोज सामना होता है उन बातों पर किसी का ध्यान जाता ही नहीं सिवाय परेशान जनता के, सच मानों तो सिर्फ ये नेता ही हिंदू मुस्लिम का राग अलापकर अपने सियासी मतलब के लिए दिलों में भेद पैदा करते हैं वरना क्या मुसलमान नहीं जानता कि अयोध्या में जिस जगह पर मस्जिद थी वहां कभी मंदिर हुआ करता था क्योंकि वो भी इस देश में आदिकाल से रहता आ रहा है अगर जनता में से मुसलमानों से पूछा जाए कि उन्हें मस्जिद अयोध्या में किसी भी जगह पर बना दी जाए तो शायद उन्हें कोई एतराज न हो क्योंकि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन उन सियासी नेताओं को ज़रुर फर्क पड़ता है जिन्हें अपनी सियासी दुकानों के बंद होने का खतरा सताने लगता है। सच मानों तो कभी मेरे दिल में भी ये ख्याल आता है कि वहां मंदिर की जगह एक अस्पताल बना दिया जाए ताकि सभी धर्मों को एक जगह स्वास्थ्य सुविधा मिल सके ये कैसी इस देश की विडंबना है कि देश का आम आदमी कुचला जा रहा है महंगाई के बोझ तले औऱ सियासी पार्टियां हैं कि जातिगत और धर्मगत प्रधानमंत्री बनाने में लगी है उन विषयों पर कोई बात ही नहीं करता जो जनता सबसे पहले सुनना चाहती है ताकि वो प्रधानमंत्री और पार्टी को आसानी से चुन सके। अगर मैं एक आम आदमी की भाषा में बात करुं तो जनता को चाहिए कि वो प्रधानमंत्री आए जो देश का हो, देश की नब्ज को पहचानता हो, देश के अंदर कौन सबसे ज्यादा दु:खी है ये भी जानता हो, क्यों कि वो एक देश का प्रधान होता है अपने देश रुपी घर में फैली सभी बुराइयों को खत्म करना उसका पहला मकसद होना चाहिए लेकिन यहां तो कुछ और ही सोचा जाता है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए जनता को क्या पट्टी पढ़ाई जाए कि वो उसकी पार्टी को जिता दे फिर देखेंगे कि किसको क्या बनाना है…. वाकई बहुत अंधेरगर्दी है।
shashank.gaur88@gmail.com

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